टप्पल का मासूम बालिका हत्याकांड। मानवता पुनः शर्मसार हुई।
बदनाम खबरची में आज बात करेंगे देश में बढ़ रही हैवानियत की शर्मसार होती मानवता की एवं देश के लचीले कानूनों की।
अलीगढ़ जिले के टप्पल में ढाई वर्षीय मासूम बालिका ट्विंकल की हुई हत्या ने देशभर को झझोड़ दिया, मात्र चंद रुपयों के झगड़े में दरिंदे पड़ोसियों ने ही मानवता की सारी हदें पार कर दी एवं मासूम ट्विंकल को बेरहमी एवं बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया,घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है, आखिर हमारा समाज कहां जा रहा है,मासूम की रूह चीख-चीख कर पूछ रही है, कि उसका कसूर क्या है? एक घर का हँसता-खेलता खिलौना छीन लिया गया देश गुस्से में है, सरेआम फांसी की मांग की जा रही है,अपराधी सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं, लेकिन क्या कानून उनको जनता द्वारा मांगी जा रही सजा देगा.... शायद नहीं? कानून तो अंधा बहरा है, वह अपना काम अपनी मदमस्त चाल से करेगा,ट्रायल होगा, बहस होगी- सबूत होंगे और न जाने क्या-क्या होगा, पूरी प्रकिया इतनी उबाऊ और लंबी की सजा का मकसद ही समाप्त,और यदि सजा होगी भी जाए तो हाई कोर्ट, सुप्रीमकोर्ट,राष्ट्रपति के यहां क्षमा याचना आदि-आदि।
इतने सारे झोल हैं इस लंबी प्रक्रिया में या यह कहो कहो हमारी कानून व्यवस्था में कि अपराधी के हाथ जघन्य अपराध करते हुए शायद बिल्कुल भी नहीं कांपते,यह बात हम सब जानते हैं,एवं जानकारी होते हुए भी भी घटना होने पर तुरंत फांसी की सजा जैसी कड़ी मांग करते हैं, धरना प्रदर्शन करने लगते हैं आखिर हम इस प्रकार के जघन्य अपराधों के लिए क्यों नहीं सख्त कानूनों की मांग करते की मांग करते, अब समय आ गया है, ऐसा कानून बनाओ हत्या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का निपटारा एक सप्ताह में हो, और सजा भी सार्वजनिक कम से कम अपराध करने वाले के हाथ तो कांपे, सजा भी ऐसी हो कि देखने वालों की रूह कांप जाए जाए?
अब प्रश्न यह है की अपराधों में बढ़ोतरी क्यों हो रही है,विकास के नाम पर देश को पश्चिमी देशों की बहुराष्ट्रीय निगमों के हवाले कर दिया गया,पिछले चार दशकों से समाज में अश्लीलता बढ़ी है,समाज जिन बुराइयों और अपराधों की गिरफ्त में आ चुका है,उसको बढ़ाने में बहुराष्ट्रीय साम्राज्यवाद के मॉडल की भूमिका अहम है, विज्ञापनों, फिल्मों और सीरियलों के जरिए हिंसा, बलात्कार का प्रदर्शन खूब हो रहा है, देश में बेरोजगारी, झगड़े-फसाद, जात-पांत जैसी गहन समस्याएं नए रूपों में सामने आ रही है, सबसे ज्यादा चिंताजनक हैं बलात्कार के मामले। अश्लील विज्ञापनों और नग्न प्रदर्शनों ने समाज में आजादी नहीं, व्यभिचार को बढ़ाया दिया है। रातोंरात धन कमाने की लिप्सा ने समाज में अपराधियों की एक बड़ी जमात ही खड़ी कर दी है, प्रशासन और समाज सेवकों की भूमिका कारगर नहीं बन पा रही है, समाज विरोधी और अपराधी तत्त्वों पर समाज का दबाव खत्म हो गया है। आजदी के नाम पर उद्दंडता,अश्लीलता जैसी सामाजिक बुराइयों का बोलबाला हो गया है,पुलिस अपराध रोकने में नाकाम नज़र आती दिख रही है,आये दिन हो रही हिंसक,बलात्कारी घटनाओं पर पुलिस ज्यादातर चुपचाप देखती रहती है,अपराधों को रोकने में न तो पुलिस सक्षम दिखती है,और न तो समाज के जिम्मेदार लोगों की पहल ही इस दिशा कारगर होती दिख रही है, हमारे देश का कानून इतना लचीला है कि ज्यादातर अपराधी अपराध करने के बाद भी आसानी से छूट जाते हैं या उन्हें सजा इतनी देर में मिलती है कि उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। इसलिए अपराधियों के हौसले निरंतर बढ़ते रहते हैं,आज शख़्त कानून बनाने के लिए सरकार व विपक्ष को एक मत होकर इसे मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए,जो कि आज समाज के हो रहे पतन के लिए महती आवश्यकता हैं,इस अवसर पर मशहूर शायर जमील हापुड़ी की चार लाइनें याद आ रही है...
देश में बड़ा इस कदर अय्याशी का रोग रोग, चार साल की बच्ची से भी किया गया संभोग,
घर वालों को मुख से बाहर मिली जबान जबान,
कैसा हिंदुस्तानी,यह कैसा हिंदुस्तान